गुणायतन - एक परिचय
तीर्थराज श्री सम्मेदशिखर जी जैन धर्मावलम्बियों का शिरोमणि तीर्थ है, यहाँ देश विदेश से प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु/ पर्यटक आतें हैं, इस परम पूज्य सिद्ध स्थल पर दिगंबर जैन समाज का मंदिरों के अतिरिक्त धर्म प्रभावना का कोई अन्य ऐसा माध्यम नहीं है जो उन्हें आकर्षित एवं प्रभावित कर जैन धर्म का बोध करा सके। इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए गुणायतन का निर्माण किया जा रहा है.
जैन दर्शन में आत्मशक्तियों के विकास अथवा आत्मा से परमात्मा बनने की शिखर यात्रा के क्रमिक सोपानों को चौदह गुणस्थानों द्वारा बहुत सुंदर ढंग से विवेचित किया गया है. जैन दर्शन में जीव के आवेगों-संवेगों और मन-वचन- काय की प्रवत्तियों के निमित्त से अन्तरंग भावों में होने वाले उतार-चढ़ाव को गुणस्थानों द्वारा बताया जाता है. गुणस्थान जीव के भावों को मापने का पैमाना है. परम पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद एवं परम पूज्य मुनि श्री प्रमाणसागर जी महाराज की मंगल प्रेरणा से मधुबन, सम्मेदशिखरजी में निर्मित होने जा रहे, धर्मायतन गुणायतन में इन्हीं चौदह गुणस्थानों को दृष्य-श्राव्य-रोबोटिक्स-एनिमेसन प्रस्तुति के माध्यम से दर्शनार्थियों को समझाया जायेगा. परिसर में बनने वाले जिनालय, जैन स्थापत्य और कला के उत्कृष्ट उदाहरण होगें. और अधिक जानने के लिए कृपया वेबसाइट www.gunayatan.com का अवलोकन करें.इस प्रणम्य स्थल की छांव में तीर्थराज की पावन भूमि का स्पर्श और गुणायतन का आकर्षक अवलोकन जैन सिद्धांतों के वैज्ञानिक चिंतन को नई दृष्टि देगा। वस्तुतः सिद्धभूमि के इस प्राण वायु में हम भावों से साक्षात सिद्धरोहण कर सकेंगे, तीर्थराज की वंदना की प्रयोजन सिद्धि में मील का पत्थर सिद्ध होगा यह गुणायतन......
गुणस्थान परिचय
"गुणस्थान" जैनदर्शन का एक विशिष्ट पारिभाषिक शब्द है। जैनदर्शन के अनुसार जीव के आवेग-संवेगों और मन वचन काय की प्रवृत्तियों के निमित्त से उसके अन्तरंग भावों में उतार-चढाव होता रहता है। जिन्हें गुणस्थानों द्वारा बताया जाता है। गुणस्थान जीव के भावों को मापने का पैमाना है। यह जीव के अन्तरंग परिणामों में होने वाले उतार-चढाव का बोध कराता है। साधक कितना चल चुका है और कितना आगे उसे और चलना है, गुणस्थान इस यात्रा को बताने वाला मार्ग सूचक पट्ट है। गुण स्थानों के माध्यम से ही जीव की मोह और निर्मोह की दशा का पता चलता है। इससे ही संसार और मोक्ष के अन्तर का पता चलता है। कुल मिलाकर आत्मा से परमात्मा तक की शिखर यात्रा में होने वाले आत्म विकास की सारी कहानी हमें गुणस्थानों द्वारा पता चलती है। समग्र जैन तत्वज्ञान और कर्मसिद्धांत का विवेचन इन्हीं गुणस्थानों द्वारा किया जाता है।
चौदह गुणस्थान
१. अयोग केवली
२. सयोग केवली
३. क्षीण मोह
४. उपशांत मोह
५. सूक्ष्म सांपराय
६. अनिवृत्तिकरण
७. अपूर्वकरण
८. आप्रमत्त विरत
९. प्रमत्त विरत
१० देश विरत
११ अविरत सम्यक्त्व
१२ सम्यग् मिथ्यात्व
१३ सासादन सम्यक्त्व
१४ मिथ्यात्व